बारहवीं के बाद से न जाने कितनी फिल्में देखी होंगी मैंने।फिर भी तीन चार सौ तो देख ही लिया हूँ।मुझे नही याद कि मैं आख़िरी बार कब भावुक हुआ था।दिल बेचारा ऐसी फ़िल्म है जो शुरुआत से ही इतना स्मूथली अपनी कहानी का जाल बुनते हुए आपको बांध लेती है कि आप "इमैनुएल राजकुमार जूनियर (मैनी)" से पट्ट से कनेक्ट हो जाते हैं। फिर जेपी की वो फ़िल्म की कहानी बनाना या फिर "किज्जी बासु" पे "मैनी" का फिदा हो जाना।फिर बीच बीच मे कई दिल छू लेने वाले डायलॉग्स जैसे "एक था राजा एक थी रानी दोनों मर गए ख़त्म कहानी,तुम सेफ नहीं लगते,तुम सीरियल किलर टाइप लगते हो. मैं सीरियल किलर तुम... मैं कोई रियलिटी शो की कंटेस्टेंट सी लगती हूँ जो इस हफ्ते एलिमिनेट होने वाली है पर कोई मुझे वोट देके एक और हफ्ते के लिए जिंदा रख रहा है.,और मैं तुम्हारी गर्लफ्रेंड नहीं हूं ,अभी नही या कभी नही ..कभी नहीं .चल झूठी..अंकल मैं बहुत बड़े बड़े सपने देखता हूँ लेकिन उन्हें कभी पूरा करने का मन नही करता लेकिन किज्जी का सपना तो सिर्फ पेरिस जाने का है और उसका सपना पूरा करने का बहुत मन करता है..,मैनी से मैं जब मिला था तो...