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एक छोटा प्रयास

चला हूं मंजिल पाने की जद में नजर  तले 
उतरने की जंग में पूरी तैयारी है दोस्तों!
कहता कौन है कि डूब रहा है सूरज 
चांद की भी तो अपनी जिम्मेदारी है दोस्तों!
मिल जा रहा है रहबर सरेआम राहों में
तिलिस्म तोड़ने की अपनी भी मनसबदारी है दोस्तो!
दुश्मनों की मेहरबानी से बात बिगड़ी नहीं मेरी
दोस्तों की भी अपनी कलाकारी है दोस्तों!
दावते-रह में मिल रहे हैं सैकड़ो ख्वाब पर्दे तले 
कहो किस तरह हिम्मत मैंने हारी है दोस्तों!
गर होता है बर्बादी के बाद आबादी का आलम 
तो फऱकत मेरी भी जीतने की बारी है दोस्तों!
है अरमां की कुछ कर मिट सकूं जमाने के लिए
पर जमाने की शर्त भी बड़ी भारी है दोस्तों!
                            
                                          © वागीश

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"फेंक जहां तक भाला जाए" - वाहिद अली वाहिद द्वारा रचित

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क्या है

लिखते हैं थोड़ा पर शायर नहीं हम बार बार बेमतलब का ये अर्ज़ क्या है हारे हैं खुद से या हराए हुए हम इन सारी बातों में अब फर्क क्या है जिम्मेदार सारी अपनी उन गलती के हैं हम अब ये भी पता है अपने फ़र्ज़ क्या हैं बीमार बन के बैठे अस्पतालों में हैं हम अब जा कर जाना कि ये मर्ज क्या है बर्बाद तो अब हैं खयालों में भी हम जुआ खेलने में तब हर्ज क्या है © सत्यम

सहेली

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