जिंदगी में कुछ पाने की ख्वाहिश में अक्सर हम कुछ ना कुछ खो देते हैं.. कोई रातों की नींद खोता है.. तो कोई सुबह की चैन खो देता है। दोस्त- यार तो शायद मिलते ही हैं बिछड़ने के लिए.. एक शहर से दूसरे शहर चले जाओ.. नए लोग मिलते हैं, व्यस्तता बढ़ती है... तो उस पुराने शहर के दोस्त काफी पीछे छूट जाते हैं। उम्र के साथ समझ और जिंदगी संवारने का दबाव दोनों बढ़ता जाता है.. ऐसे में चंद जरूरत के लोग याद आते हैं बाकी सब किस्से बनकर रह जाते हैं.. हमें उन दोस्तों के साथ बिताए लम्हों को भी याद करने का समय नहीं होता.. शायद जिंदगी इतनी व्यस्त चल रही होती है या फिर हम समझ चुके होते हैं, अब उनका हमारी जिंदगी में कोई अहमियत नहीं। उनकी जरूरत भला क्यूं हो.. हमारे नए दोस्त तो हैं.. जिनके साथ हम आज भी वही मस्ती करते हैं, जैसा उन पुराने शहर वाले दोस्तों के साथ करते थे।
खुद का अपने किसी करीबी से इग्नोर होना सब को बुरा लगता है.. लेकिन क्या करें, जिंदगी है साहब! कभी-कभी तो हम इग्नोर भी कर जाते हैं अपने उन पुराने दोस्तों को, आभासी या वास्तविक रूप से सामने दिखने पर.. शायद.. जिंदगी में हमारी कुछ उथल-पुथल चल रही होती या फिर हम उसको अहमियत देना छोड़ दिए हैं। करियर की रेस में यूं उलझ जाते हैं हम.. दोस्त जो हमें मोटिवेट करता था, हर पल हमारे साथ होता था.. उसको भी भूल जाते हैं हम।
वो वादे-कसमें सब टूट जाते हैं कि- "दोस्त! चाहे जहां भी रहेंगे, मिलते रहेंगे। साथ बैठकर फिर से इसी तरह हंसी मजाक करेंगे।"
हम उन यादों से भी अक्सर भागते हैं, जिनमें कभी-कभी हमारे उन पुराने दोस्तों की बातें याद आती हैं। जिंदगी संवारने का दबाव बेशक होता है... जिसमें हम पुराने दोस्तों के लिए समय नहीं निकाल पाते.. हां मगर, हम आज भी अपना भरपूर समय कुर्बान करते हैं अपने इन नये दोस्तों के लिए।
खैर.. रीत यही है दुनिया की.. हमारी, आपकी, हम सब की।
अगर कहीं भ्रम हैं आपको कि आप की अहमियत किसी की नजरों में ज्यादा है और उम्मीद लगाए बैठे हैं कि आपको वही इज्जत और जगह मिलेगी हमेशा-हमेशा के लिए.. तो माफ करना, साहब! इस बात की प्रायिकता लगभग शून्य ही है.. हां, दुःख और कष्ट जरूर होगा आपको कभी ना कभी इस भ्रम को अपने अंतर्मन में पालने के लिये।
सच शायद अस्वीकार्य हो.. लेकिन सच है तो। यकीन ना हो.. तो चंद दिन सबसे गायब हो कर देख लीजिये, लोग आपका नाम तक भूल जायेंगे। दरअसल, इंसान पूरी जिंदगी धोखे में रहता है कि वह दूसरों के लिए अहम है। हालांकि हकीकत यह है, आपके होने ना होने से किसी को फर्क नहीं पड़ता।
अंत में अपनी बात 'जाफ़र अली हसरत' साहब की इस शेर के साथ खत्म करूंगा-
"तुम्हें ग़ैरों से कब फ़ुर्सत हम अपने ग़म से कम ख़ाली,
चलो बस हो चुका मिलना न तुम ख़ाली न हम ख़ाली।"
-शशांक
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