Skip to main content

सहेली



मनमोहक रूप है तेरा, 
चाँदनी सी शीतल है तू ।
मेरा हाथ थामे चल हमसफर,
बस इतनी सी ख्वाहिश है तू। 
तू स्वप्न सी है कभी ,
कभी हकीकत है तू।
कुछ अजनबियों सी,
तो कुछ अपनी सी है तू।
थोड़ा गुस्सैल चिड़चिड़ी सी,
तो कभी मनमोहिनी सी खूबसूरत है तू।
चाँद सा रूप,कोकिला सी मधुर है तू।
पायल की झंकार सी तेरी बोली।
सरिता सी मृदुल है तू,
कभी परियों की कहानियों की नायिका,
तो कभी यादों की पतंग की डोर है तू।
मनमोहक सा रूप है तेरा,
चाँदनी सी शीतल है तू।
     © प्रीति 

Comments

Popular posts from this blog

"फेंक जहां तक भाला जाए" - वाहिद अली वाहिद द्वारा रचित

कब तक बोझ संभाला जाए द्वंद्व कहां तक पाला जाए दूध छीन बच्चों के मुख से  क्यों नागों को पाला जाए दोनों ओर लिखा हो भारत  सिक्का वही उछाला जाए तू भी है राणा का वंशज  फेंक जहां तक भाला जाए  इस बिगड़ैल पड़ोसी को तो  फिर शीशे में ढाला जाए  तेरे मेरे दिल पर ताला  राम करें ये ताला जाए  वाहिद के घर दीप जले तो  मंदिर तलक उजाला जाए कब तक बोझ संभाला जाए युद्ध कहां तक टाला जाए  तू भी है राणा का वंशज  फेंक जहां तक भाला जाए - वाहिद अली वाहिद

क्या है

लिखते हैं थोड़ा पर शायर नहीं हम बार बार बेमतलब का ये अर्ज़ क्या है हारे हैं खुद से या हराए हुए हम इन सारी बातों में अब फर्क क्या है जिम्मेदार सारी अपनी उन गलती के हैं हम अब ये भी पता है अपने फ़र्ज़ क्या हैं बीमार बन के बैठे अस्पतालों में हैं हम अब जा कर जाना कि ये मर्ज क्या है बर्बाद तो अब हैं खयालों में भी हम जुआ खेलने में तब हर्ज क्या है © सत्यम