नाम के अनुरूप व्यंग्य, हास्य, काव्य तक ही नहीं सीमित हैं हम.. इनके अतिरिक्त यहां साहित्यिक, सांस्कृतिक, व्यावहारिक एवं सामाजिक विषयों पर भी बात होगी।
नींद ना आये, रातों में जागता अधूरे सपने लिए, गलियों में भागता अपने आप से बस यही पूछता कि कहाँ जा रहा हूँ मैं? कोई है रोकता तो रुकते नही हो कोई है टोकता तो डरते नही हो अनजाने रास्ते पर चले जा रहे हो डर भी है पर निडरता दिखा रहे हो कहाँ तक जाओगे पता नही है पहुँच भी पाओगे पता नही है तभी एक आवाज़ मुझे रोकती है कानो में आ कर वो मुझे पूछती है कि कहाँ जा रहा है तू? मैने उसे अपने पास बैठाला और कंधों पर उसके मैने हाथ डाला बोला बहुत ही अदब से उससे तो क्या हार मान लूं मैं? © सत्यम
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