नये हर आगाज़ को अंजाम मान लेता हूं
अपने कमरे की छत को आसमान मान लेता हूं
अपनी थकावट को मैं आराम मान लेता हूं
कण कण को मैं भगवान मान लेता हूं
किसी और की कही बातों को मैं मानूं या न मानूं
लेकिन वो कहती है तो मान लेता हूं
उसके आंसू को अपना अपमान मान लेता हूं
खुद के चेहरे की हंसी को बेईमान मान लेता हूं
उगते सूरज को मैं ढलती शाम मान लेता हूं
सादे पानी को मदिरा का जाम मान लेता हूं
किसी और की कही बातों को मैं मानूं या न मानूं
लेकिन वो कहती है तो मान लेता हूं
हर झूठ को उसके मैं सच मान लेता हूं
हर जीत को अपनी मैं हार मान लेता हूँ
उसके वादों को चाहत का ज्ञान मान लेता हूं
ख्वाहिश को उसकी फरमान मान लेता हूं
किसी और की कही बातें की मैं मानूं या न मानूँ
लेकिन वो कहती है तो मान लेता हूँ
© रक्तफूल
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