मानता हूँ,मैं बहुत कुछ हूँ तुम्हारे लिए।
सुकून हूँ तुम्हारे मन की शांति हूँ,
जिंदगी भी हूँ और प्रार्थना भी,
अरदास,इबादत,अज़ान भी मैं ही हूँ तुम्हारे लिए,
गीत हूँ, मनमीत हूँ,
तुम्हारे मन को सुकून देने वाला संगीत हूँ।
मानता हूँ
तुम्हारे हृदय की धड़कन का शोर हूँ मै,
वो सब कुछ हूँ मैं तुम्हारे लिए,
पर क्या मेरी बात सुनना पसंद करोगी?
अगर मैं कहूँ मुझे कोई और पसन्द है,
क्या तब भी मैं ऐसा ही रहूंगा तुम्हारे लिए,
तुम्हारे जज़्बात गवाही देंगे,
मुझे इसी तरह बेपनाह चाहने के लिए,
तुम्हारी अंतरात्मा तड़प नही उठेगी!!
मानता हूं किसी को बेपनाह प्यार करना सही है,
बदले में प्यार की उम्मीद बेईमानी भी नही है।
मानता हूं तुम्हारी पसन्द है वो,
उसकी पसन्द भी तो मायने रखती है,
अधिकार है उसे अपनी बात कहने की,
अपने जज़्बात कहने की।
हर चाहत पूरी हो ऐसा जरूरी तो नहीं,
जिसे चाहो वो मिल जाये जरूरी तो नहीं।
-रक्तबीज
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