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"फेंक जहां तक भाला जाए" - वाहिद अली वाहिद द्वारा रचित

कब तक बोझ संभाला जाए द्वंद्व कहां तक पाला जाए दूध छीन बच्चों के मुख से  क्यों नागों को पाला जाए दोनों ओर लिखा हो भारत  सिक्का वही उछाला जाए तू भी है राणा का वंशज  फेंक जहां तक भाला जाए  इस बिगड़ैल पड़ोसी को तो  फिर शीशे में ढाला जाए  तेरे मेरे दिल पर ताला  राम करें ये ताला जाए  वाहिद के घर दीप जले तो  मंदिर तलक उजाला जाए कब तक बोझ संभाला जाए युद्ध कहां तक टाला जाए  तू भी है राणा का वंशज  फेंक जहां तक भाला जाए - वाहिद अली वाहिद

सहेली

मनमोहक रूप है तेरा,  चाँदनी सी शीतल है तू । मेरा हाथ थामे चल हमसफर, बस इतनी सी ख्वाहिश है तू।  तू स्वप्न सी है कभी , कभी हकीकत है तू। कुछ अजनबियों सी, तो कुछ अपनी सी है तू। थोड़ा गुस्सैल चिड़चिड़ी सी, तो कभी मनमोहिनी सी खूबसूरत है तू। चाँद सा रूप,कोकिला सी मधुर है तू। पायल की झंकार सी तेरी बोली। सरिता सी मृदुल है तू, कभी परियों की कहानियों की नायिका, तो कभी यादों की पतंग की डोर है तू। मनमोहक सा रूप है तेरा, चाँदनी सी शीतल है तू।      © प्रीति 

इमैनुअल राजकुमार जूनियर

बारहवीं के बाद से न जाने कितनी फिल्में देखी होंगी मैंने।फिर भी तीन चार सौ तो देख ही लिया हूँ।मुझे नही याद कि मैं आख़िरी बार कब भावुक हुआ था।दिल बेचारा ऐसी फ़िल्म है जो शुरुआत से ही इतना स्मूथली अपनी कहानी का जाल बुनते हुए आपको बांध लेती है कि आप "इमैनुएल राजकुमार जूनियर (मैनी)" से पट्ट से कनेक्ट हो जाते हैं। फिर जेपी की वो फ़िल्म की कहानी बनाना या फिर "किज्जी बासु" पे "मैनी" का फिदा हो जाना।फिर बीच बीच मे कई दिल छू लेने वाले डायलॉग्स जैसे "एक था राजा एक थी रानी दोनों मर गए ख़त्म कहानी,तुम सेफ नहीं लगते,तुम सीरियल किलर टाइप लगते हो. मैं सीरियल किलर तुम... मैं कोई रियलिटी शो की कंटेस्टेंट सी लगती हूँ जो इस हफ्ते एलिमिनेट होने वाली है पर कोई मुझे वोट देके एक और हफ्ते के लिए जिंदा रख रहा है.,और मैं तुम्हारी गर्लफ्रेंड नहीं हूं ,अभी नही या कभी नही ..कभी नहीं .चल झूठी..अंकल मैं बहुत बड़े बड़े सपने देखता हूँ लेकिन उन्हें कभी पूरा करने का मन नही करता लेकिन किज्जी का सपना तो सिर्फ पेरिस जाने का है और उसका सपना पूरा करने का बहुत मन करता है..,मैनी से मैं जब मिला था तो...