बारहवीं के बाद से न जाने कितनी फिल्में देखी होंगी मैंने।फिर भी तीन चार सौ तो देख ही लिया हूँ।मुझे नही याद कि मैं आख़िरी बार कब भावुक हुआ था।दिल बेचारा ऐसी फ़िल्म है जो शुरुआत से ही इतना स्मूथली अपनी कहानी का जाल बुनते हुए आपको बांध लेती है कि आप "इमैनुएल राजकुमार जूनियर (मैनी)" से पट्ट से कनेक्ट हो जाते हैं। फिर जेपी की वो फ़िल्म की कहानी बनाना या फिर "किज्जी बासु" पे "मैनी" का फिदा हो जाना।फिर बीच बीच मे कई दिल छू लेने वाले डायलॉग्स जैसे "एक था राजा एक थी रानी दोनों मर गए ख़त्म कहानी,तुम सेफ नहीं लगते,तुम सीरियल किलर टाइप लगते हो. मैं सीरियल किलर तुम... मैं कोई रियलिटी शो की कंटेस्टेंट सी लगती हूँ जो इस हफ्ते एलिमिनेट होने वाली है पर कोई मुझे वोट देके एक और हफ्ते के लिए जिंदा रख रहा है.,और मैं तुम्हारी गर्लफ्रेंड नहीं हूं ,अभी नही या कभी नही ..कभी नहीं .चल झूठी..अंकल मैं बहुत बड़े बड़े सपने देखता हूँ लेकिन उन्हें कभी पूरा करने का मन नही करता लेकिन किज्जी का सपना तो सिर्फ पेरिस जाने का है और उसका सपना पूरा करने का बहुत मन करता है..,मैनी से मैं जब मिला था तो वो उन्नीस साल का था,साला उसकी स्माइल शुरू से ही क़ातिल है और हमभी मिले तो फिदा हो गए..वो तो बाद मे पता चला कि अंदर से हरामी है..इत्यदि(वैसे मैंने सबसे उम्दा डायलॉग नही चुना है वो सब लोग पहले ही टीज़र में देख चुके हैं)" अगर मुझे बेस्ट डायलॉग चुनना हो तो बेशक मैं कुछेक चुनूँ परन्तु अच्छे डायलॉग्स चुनने हो तो शायद ही इस फ़िल्म का कोई डायलॉग छूटे।सब कुछ ठीक चल रहा होता है। हर फ़िल्म की तरह इस फ़िल्म की भी कहानी घूमते टहलते इश्क़,रोमांस की गलियों में जा रही होती है।आप इसमें कुछ भी गेस नही कर सकते कि अब आगे क्या होगा? इस फ़िल्म की एक खासियत सबसे बड़ी है और वो ये कि इसमें कुछ भी बनावटीपन नहीं है। लगता ही नही है कि फ़िल्म चल रही है और ये पौने दो घण्टे में खत्म हो जायेगी।सब कुछ वास्तविक लगता है जैसे मैनी मैं खुद हूँ और अपनी कहानी बयां कर रहा हूं..इतने जीवंत क़िरदार और उसपे उतनी ही उम्दा कहानी लाजवाब कर देती है ।इस फ़िल्म में कई स्मूथ मोड़ आते है आप हर मोड़ के बाद संभल जाते हैं लेकिन फिर अचानक सब बदल जाता है अंतिम बीस मिनट में जो उथल पुथल मचती है कि शब्दों से बयां करना मुश्किल है,अगर कभी इश्क़ हुआ होगा तो बहुत सी सिचुएशन रिलेटेबल भी लगेगी। बहुत से लोग तो खुद को ही मैनी समझ लेंगे.. " सेरी किज्जी बासु" फ़िलहाल फ़िल्म का अंत जिस मोड़ पे होता है मोस्ट हार्ट टचिंग मोमेंट एवर..फ्यूनरल स्पीच देते हुए दो सबसे खास लोग..एक बेस्ट फ्रेंड और दूसरी ऐसी शख्सियत जो बेपनाह प्यार करती है दोनों की स्पीच दिल छू लेती है।ये रिव्यू लिखना और फिल्म में क्या हुआ उसे शब्दों दे बयाँ करना बहुत ही कठिन है।बस ये रिव्यू आपको मूवी देखने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से लिखा गया है। आप ये फिल्म एक बार जरूर देखना। बिल्कुल भी निराश नही होंगे।
BTW we'll miss you "इमैनुएल राजकुमार जूनियर"
© शैलेश
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