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ऐलान



मैंने अपने आप को हर दर्द दिया है
रास्तों में कांटे और मौसम सर्द दिया है
गाड़ी से उतर कर, पैदल चला हूं मैं
छांव को छोड़ कर, सूरज से जला हूं मैं
हर गलती की कड़वी दवा पी है मैंने
उम्मीदों को थोड़ी हवा दी है मैने
भटकाते हर मार्ग को मैंने है छोड़ा
हर झूठे स्वप्न को मैंने है तोड़ा
किसी को बुला लो, दो दो हाथ कर लो
अब तैयार हूं मैं, ये ऐलान कर दो

© सत्यम

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"फेंक जहां तक भाला जाए" - वाहिद अली वाहिद द्वारा रचित

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क्या है

लिखते हैं थोड़ा पर शायर नहीं हम बार बार बेमतलब का ये अर्ज़ क्या है हारे हैं खुद से या हराए हुए हम इन सारी बातों में अब फर्क क्या है जिम्मेदार सारी अपनी उन गलती के हैं हम अब ये भी पता है अपने फ़र्ज़ क्या हैं बीमार बन के बैठे अस्पतालों में हैं हम अब जा कर जाना कि ये मर्ज क्या है बर्बाद तो अब हैं खयालों में भी हम जुआ खेलने में तब हर्ज क्या है © सत्यम

सहेली

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