लिखते हैं थोड़ा पर शायर नहीं हम
बार बार बेमतलब का ये अर्ज़ क्या है
हारे हैं खुद से या हराए हुए हम
इन सारी बातों में अब फर्क क्या है
जिम्मेदार सारी अपनी उन गलती के हैं हम
अब ये भी पता है अपने फ़र्ज़ क्या हैं
बीमार बन के बैठे अस्पतालों में हैं हम
अब जा कर जाना कि ये मर्ज क्या है
बर्बाद तो अब हैं खयालों में भी हम
जुआ खेलने में तब हर्ज क्या है
© सत्यम
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