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बेड़ियों में जकड़ा बचपन



बचपन शब्द सुनते ही हमारे मन में उभरता है बेपरवाह,मासूम सा चेहरा,मन मे स्वच्छंद रूप से आते हुए स्वथ्य विचार, या फिर कंधे पर बस्ता टांगे स्कूल जाता हुआ,या अपने किसी मित्र को बचाने के लिए शिक्षक से किसी और की शिकायत करता हुआ बचपन..
लेकिन कभी बचपन का नाम सुनते ही हमारे मन में ऐसी कोई तस्वीर नहीं उभरती जिसमें बचपन चंद  पैसों के लिए किसी स्टेशन पर जूते रगड़ता हुआ, ट्रैफिक सिग्नल पर किसी के सामने हाथ पसारे, किसी जमीदार के यहां अपनी आखिरी सांस तक काम करने की कसम खाया हुआ,किसी सड़क या नाले के किनारे नशे में धुत हुआ हो..
लेकिन वर्तमान समय मे बचपन की दूसरी तस्वीर ही वास्तविक तस्वीर सी प्रतीत होने लगी है। जरा सोचिए जिन हाथों में कलम और किताबें  होनी चाहिए  उन्हीं हाथों  में बालश्रम की बेड़ियां होंगी तो कैसे एक शिक्षित,जिम्मेदार तथा नैतिक कर्तव्यों से युक्त नागरिक का निर्माण हो पाएगा? जिन कन्धों पे इस देश का आने वाला कल है,उन कंधों पे अभी से ही घर की तमाम सारी जिम्मेदारियां ऐसे ही दे देना उसे कमज़ोर नही करेगा या बिखरने से रोक पायेगा? 
ऐसे ना जाने कई तस्वीरें हैं जो इस समाज को सुंदर मनमोहक एवं सबके लिए समान बनने से रोकती हैं|
एक रिपोर्ट के अनुसार  दुनिया भर मे १५.३ करोड़ बच्चे बालश्रम कर रहे हैं।जिनमें से ७.५करोड़ बच्चों से अवैध एवं खतरनाक कार्य कराए जा रहे हैं.
बाल श्रम समस्त विश्व के लिए एक  बहुत विकट समस्या है। इसकी गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आज से १८साल पहले अंतर्राष्ट्रीय बाल श्रम निषेध दिवस की शुरुआत की गई इसका उद्देश्य बच्चों को बालश्रम से मुक्त कराना है। परंतु अभी तक इस दिवस के लक्ष्य से हम न जाने कितने दूर हैं।भारतीय संविधान में भी १४वर्ष से कम उम्र के बच्चों से श्रम कराने को अपराध की श्रेणी में रखा है ।इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए हमें मिलकर एक विश्वव्यापी एवं वर्तमान व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन करने वाले आंदोलन की सख्त जरूरत है।
जाते जाते चंद पंक्तियां
"अगर हर रोज काम पर न जाएगा बचपन,
बहुत ही उज्जवल होगा इस देश का आने वाला कल।
यूं ही नशे में ना व्यर्थ हुआ यह बचपन,
एक सुदृढ़ राष्ट्र का निर्माण करेगा कल।
ऐसे ही अगर पढ़ लिख कर शिक्षित हुआ यह बचपन,
निसंदेह विश्व का नेतृत्व करेगा कल।"
 ।बालश्रम बन्द करो।

© शैलेश

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