भारत देश में सबसे ज़्यादा 57% जनसंख्या द्वारा बोले जाने वाली भाषा के रूप में हिंदी को मान्यता प्राप्त है, जबकि लगभग 43% जनसंख्या की मातृ भाषा के रूप में भी हिंदी को ही जाना जाता है, संविधान ने हिंदी को संघ की राजभाषा का स्थान दिया है और साथ ही साथ हिंदी आठ राज्यों की आधिकारिक भाषा भी है, लेकिन हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में मान्यता को लेकर अनेकोंनेक तर्क हैं और इसे लेकर मतभेद स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद संविधान सभा में भाषा को लेकर हुई लम्बी बहस से ले कर आज तक क़ायम है। एक तरफ यह तर्क है कि ‘एक देश’ के ‘एक संविधान’ में ‘एक भाषा’ को भी मान्यता मिलनी चाहिए जो कि राष्ट्रीय एकता और एकरूपता का प्रतीक बने। ऐसी एकरूप व्यापक व्यवस्था, जिसमें कि देश के लोगों में संवाद की कमी न रहे और सरकारी कार्यवाही में भाषा बाधा न बन सके। वहीं दूसरी तरफ, भारत जैसे बहुसांस्कृतिक और बहुभाषी देश में भाषा की एकरूपता देश की अखंडता और विविधता के लिए अनुचित है और गैर हिंदी भाषियों पर हिंदी को जबरन थोपना उनके अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह के समान है। इस प्रकार के अनेकोनेक तथ्यों से ही देश की राष्ट्रभाषा के सवाल...